ICAR
 

कृषि‍ वैज्ञानिक चयन मंडल के अध्यक्ष एवं सदस्यों का प्रोफाइल
अध्यक्ष की प्रोफाइल
डॉ. संजय कुमार ने मास्टर्स और डॉक्टरेट डिग्री जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर तथा इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली से, क्रमश: प्राप्त की। उन्होंने जनवरी 1990 में वैज्ञानिक के पद पर सीएसआईआर-आईएचबीटी में कार्य करना शुरू किया और फरवरी 2023 में उसी संस्थान के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने टेक्सास टेक विश्वविद्यालय (यूएसए), रॉथमस्टेड रिसर्च (यूके), और कैंसस स्टेट विश्वविद्यालय (यूएसए) में पोस्ट-डॉक्टरल प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्तमान में कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल के अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं |
शोध: प्रमुख योगदानों में एक नये कार्बन फिक्सेशन पाथवे की खोज और उसे एक विविध प्रणाली में स्थानांतरित करके फोटोरेस्पिरेटरी हानियों को कम करने और फोटोसिंथेटिक लाभ और उत्पादकता वृद्धि करने की प्रक्रिया में योगदान (जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सराहा), उच्च तुंगता वाले पौधों से आटोक्लेवेबल सुपरऑक्साइड डिस्म्युटेज की खोज व उसका करेक्टरायिजेशन और संशोधन, उच्च तुंगता वाले पौधों के अनुकूलन तंत्र, सेकेंडरी मेटाबोलाइट संश्लेषण एवं स्ट्रेस सहनशीलता संबंधित जीन क्लोनिंग, गुलाब के कांटे की निर्माण प्रक्रिया की खोज, चाय में शीत निष्क्रियता और सूखे की स्थिति की कार्य प्रणाली, पौधों और माइक्रोब इंटरैक्शन की समझ, पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके न्यूट्रास्यूटिकल्स के विकास में महत्वपूर्ण योगदान एवं हिमालयी पौधों एवं माइक्रोब की जीनोम तथा ट्रांसक्रिप्टोम सीक्वन्सिंग (अनुक्रमण)।
उन्तीस (29) एमएससी/पीएचडी छात्रों के मार्गदर्शन किए, अनेक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट दाखिल किए, और 211 शोध/समीक्षा लेख, पुस्तक अध्याय, संपादित पुस्तक आदि प्रकाशित किये। इनके कुछ प्रमुख योगदान किताबों और प्रमुख समीक्षाओं में भी शामिल हैं।
प्रत्यभिज्ञायों : भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आई.एन.एस.ए.), राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत (एन.ए.एस.आई.), राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एन.ए.ए.एस.) और क्रॉप इम्प्रूवमेंट सोसायटी ऑफ इंडिया के सदस्य। प्रतिष्ठित वास्विक इंडस्ट्रियल रिसर्च अवार्ड, भारतीय विज्ञान अकादमी यंग साइंटिस्ट अवार्ड, सीएसआईआर लीडरशिप प्रोग्राम में मेरिट प्रमाणपत्र, आर.डी. आसाना एंडोवमेंट लेक्चर अवार्ड, प्रोफेसर जी.वी. जोशी स्मारक लेक्चर अवार्ड, प्रोफेसर श्री रंजन स्मारक लेक्चरर अवार्ड, अल्ट्रा इंटरनेशनल टीम अवार्ड फॉर एसेंशियल ऑयल इंडस्ट्री, जी.बी.पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा बेसिक साइंस और ह्यूमैनिटीज़ कॉलेज के आउटस्टैंडिंग एलुम्नस अवार्ड, डॉ. सुबोध कुमार और ममता मुखर्जी मेमोरियल अवार्ड भी प्राप्त किया है। कई पेशेवर समितियों और कार्य समूहों के अध्यक्ष/सदस्य रहे हैं, और कई अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के संपादकीय मंडल में सेवा की है।
नई पहल: सीएसआईआर-आईएचबीटी के निदेशक के रूप में, समाज/किसानों को सशक्त बनाने के लिए कई पहलुओं को जीवंत किया, जिनमें देश में हींग और माँन्क फल की सफल पुर:स्थापन,
गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में केसर, सेब, दालचीनी, मुलेठी, लीलियम और ट्यूलिप का पुर:स्थापन, कचरा प्रबंधन और शिटाके मशरूम उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकियाँ, एवं गेंदे के सगंध तेल की उत्पादन में हिमाचल को शीर्ष राज्य बनाना प्रमुख हैं। कृषि, पोषण और जैवप्रौद्योगिकी थीम के निदेशक के रूप में कई बहु-संस्थागत परियोजनाओं को समन्वित किया, साथ ही न्यूट्रास्यूटिकल्स और न्यूट्रिशनल्स मिशन को परिकल्पित परिणामों की डिलीवरी हेतु प्रोत्साहित किया।
उद्यमिता विकास: जैव आर्थिकी पर जोर देते हुए, प्रौद्योगिकियों और उत्पादों की संख्या एक बहुत ही छोटे समयांतर में (2015-2023) 85 तक बढ़ गई और उनमें से कई को तत्काल बाजार में उपलब्ध करने के लिए प्राथमिकता दी। इन प्रयासों से 56 स्टार्टअप बने और संस्थान द्वारा उद्यमियों के साथ हस्तांतरण किए गए समझौतों/सहमतियों/एमटीएएस की संख्या में बृहद वृद्धि देखी गई (1984-2014 के दौरान 110 से लेकर 2015-2023 के दौरान 995 तक)।
विभिन्न एजेंसियों से वित्तीय संसाधन जुटाकर एवं संबंधित राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विभागों /संस्थानों के साथ जुड़कर संस्थान के समावेशी विकास को उत्प्रेरित किया। गुणवत्ता युक्त विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास हेतु अविरत प्रयास करते हुए, डॉ. संजय कुमार ने सीएसआईआर-आईएचबीटी को, शिमागो रेटिंग के अनुसार, राज्य में शीर्ष स्थान प्राप्त कराने और सीएसआईआर के 10 शीर्ष संस्थानों में शामिल कराने में सफलता प्राप्त की।

डॉ. संजय कुमार
अध्यक्ष

सदस्य के प्रोफ़ाइल
डॉ. एस. पी. किमोथी, जिन्होंने राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल से पशुधन उत्पादन प्रबंधन में स्नातकोत्तर और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की हैं, मार्च 1986 में कृषि अनुसंधान सेवा में शामिल हुए और उन्हें अनुसंधान, शिक्षण, विस्तार और अनुसंधान प्रबंधन में 36 से अधिक वर्षों का अनुभव है।
कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल के सदस्य बनने से पहले, उन्होंने लगभग 08 वर्षों तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में सहायक महानिदेशक (समन्वयन) के रूप में कार्य किया, जहां वह सरकार की महत्वपूर्ण प्रमुख योजनाओं के समन्वयन और कार्यान्वयन में शामिल थे, जिसमें किसानों की आय को दोगुना करना शामिल है। उन्होंने क्षेत्रीय समिति की बैठकों, भा.कृ.अनु.प.-निदेशकों और कुलपतियों के वार्षिक सम्मेलनों, भा.कृ.अनु.प. राष्ट्रीय पुरस्कारों, मंत्रिमंडल/प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंधित मामलों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण कार्यकलापों की एक श्रृंखला जैसे व्यापक श्रेणी के कार्यकलापों का समन्वयन किया। इन कार्यकलापों में, उन्होंने कृषि अनुसंधान और विकास की व्यापक दृष्टि और परिप्रेक्ष्य के साथ अनुसंधान प्रबंधन और समन्वयन में नेतृत्व और कौशल का प्रदर्शन किया, जो अनिवार्य रूप से उच्च अनुसंधान प्रबंधन पदों के लिए आवश्यक है। उनके द्वारा कार्यान्वित की गई परिषद की एक्स्ट्राम्यूरल फंडिंग स्कीम ने देश में कई महत्वपूर्ण अनुसंधान और प्रौद्योगिकी अंतरालों को पाटने में सहायता की है। वह परिषद स्तर पर सरकार की कई प्रमुख योजनाओं के नोडल अधिकारी थे।
डॉ. किमोठी अन्य सरकारी और गैर-सरकारी विभागों के साथ समन्वयन और तालमेल करने, समझौता ज्ञापन और कार्य योजनाओं को विकसित करने और माननीय मंत्रियों की अध्यक्षता में समीक्षा बैठकों सहित विभागीय बैठकों के लिए समन्वयन सहायता प्रदान करने के लिए नोडल बिंदु थे। डॉ. किमोठी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पुरस्कारों के माध्यम से वैज्ञानिक और कृषक समुदाय के क्षमता निर्माण और प्रोत्साहन की प्रक्रिया में निकटता से शामिल थे और अनुसंधान पत्रिकाओं के प्रकाशन के अलावा राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों/संगोष्ठियों, सम्मेलनों के आयोजन के लिए संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करते थे। सहायक महानिदेशक (समन्वयन) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भा.कृ.अनु.प. द्वारा जैविक खेती और अभिनव छोटे/सीमांत किसानों के लिए नए भा.कृ.अनु.प. पुरस्कार शुरू किए गए थे। उन्होंने इन्डो-एशियन, भारत न्यूजीलैंड और भारत सऊदी सहयोग में योगदान देने के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग और क्षमता निर्माण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए सार्क कृषि केंद्र, ढाका के शासी निकाय के सदस्य के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी योगदान दिया है। उन्होंने तकनीकी सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए यूरोप में कई विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों का भी दौरा किया है।
संस्थान स्तर पर भी उन्होंने अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार के मोर्चों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, मानद विश्वविद्यालय, करनाल के पशुधन अनुसंधान केंद्र के 08 वर्षों तक वैज्ञानिक प्रभारी के रूप में रहे, जो देश का सबसे बड़ा संस्थागत पशुधन फार्म है। उन्होंने पशुधन उत्पादन और प्रबंधन विभाग के प्रमुख के रूप में भी कार्य किया और समर्पित वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की एक टीम बनाई। उनके द्वारा की गई पहलों के परिणामस्वरूप, पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग को अपनी स्थापना के 03 वर्षों के भीतर संस्थान में सर्वश्रेष्ठ विभाग के रूप में मान्यता मिली और 2013 में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, मानद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान महानिदेशक द्वारा इसे सर्वश्रेष्ठ प्रभाग पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पशुधन अनुसंधान केंद्र और पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग के प्रभारी वैज्ञानिक के रूप में, उन्होंने साहीवाल गायों और करण फ्राइज़ क्रॉसब्रेड गायों और मुर्रा भैंसों के सर्वोत्कृष्ट पशुओं को विकसित किए, पशुधन उत्पादन और प्रबंधन के प्रमुख क्षेत्रों पर सहयोगी अनुसंधान कार्यक्रमों को प्रसरम्भ कर उन्हें मजबूत किया। इनमें डेयरी फार्मों में प्रबंधन निर्णयों को सुविधाजनक बनाने और आई.आई.टी. दिल्ली के सहयोग से व्यक्तिगत रूप से पशुओं पर नज़र रखने के लिए स्वदेशी सेंसर नेटवर्किंग का विकास, भैंसों की विभिन्न शारीरिक स्थितियों की विशिष्ट पहचान और पता लगाने के लिए जैव-ध्वनिकी का अनुप्रयोग शामिल है। बेहतर स्वास्थ्य और निरंतर उत्पादकता के लिए डेयरी पशुओं में सबसे कमजोर चरणों के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों, प्रतिरक्षा मॉड्यूलेटर अनुपूरण के लिए प्रौद्योगिकियां विकसित की गईं।
उन्होंने भैंस क्लोनिंग परियोजना सहित अनुसंधान के अग्रणी क्षेत्रों में प्रमुख बहु-विषयक अनुसंधान पहलों में योगदान दिया, जिनके व्यापक अनुप्रयोग के लिए पैकेज ऑफ प्रक्टिसेस विकसित किया गया था। एन.डी.आर.आई., क्लोनिंग अनुसंधान टीम, जिसमें वह एक प्रमुख सदस्य थे, को 2014 में आई.सी.ए.आर. इंटरडिसिप्लिनरी टीम रिसर्च अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनके नेतृत्व के दौरान, एन.डी.आर.आई., करनाल में जैविक डेयरी फार्मिंग पर अनुसंधान भी शुरू किया गया था। डेयरी पशुओं में स्थायी उच्च उत्पादन के लिए डेयरी पशुओं पर भौतिक, पर्यावरणीय और पोषण संबंधी तनावों के प्रबंधन पर अंतः विषय अनुसंधान शुरू किए गए थे और परामर्श के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में वाणिज्यिक डेयरी फार्मिंग मॉड्यूल विकसित करके देश में वाणिज्यिक डेयरी पालन को बढ़ावा देने के लिए पहल की गई थी। इन उपलब्धियों ने एन.डी.आर.आई., करनाल को भारत के माननीय प्रधान मंत्री द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस के दौरान भा.कृ.अनु.प. को सरदार पटेल पुरस्कार, 2014 से सम्मानित करने में भी योगदान दिया।
उन्होंने पशुधन उत्पादन प्रबंधन के विषयवस्तु क्षेत्र में 29 स्नातकोत्तर (14) और पीएच.डी. (15) शोध छात्रों के लिए अनुसंधान मार्गदर्शक के रूप में कार्य किया, जिनमें से कई अंतरराष्ट्रीय शोधार्थी थे। उनके द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त कई छात्र/शोधार्थी भारत और विदेशों में अपने संबंधित देशों में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। उन्होंने 4 पुस्तकें, कई तकनीकी बुलेटिन, नीति पत्रों, तकनीकी और लोकप्रिय लेखों को प्रकाशित करने के अलावा, सहकर्मी समीक्षा पत्रिकाओं में 120 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं।लगभग 10 वर्षों तक एन.डी.आर.आई., करनाल के एन.ए.टी.पी. वित्त पोषित, इंस्टीट्यूशन विलेज लिंकेज प्रोग्राम में कोर टीम के सदस्य और अग्रणी पशु वैज्ञानिक के रूप में कार्य करने से उन्हें किसानों के साथ मिलकर काम करने, भागीदारी समस्या सुलझाने के अनुसंधान की आवश्यकता को समझने के अलावा प्रौद्योगिकियों को और परिष्कृत करने के लिए अनुसंधान प्रणाली को प्रतिक्रिया प्रदान करने का अवसर मिला। एन.डी.आर.आई. करनाल के आई.वी.एल.पी कार्यक्रम, जिसमें वह सह-नेतृत्वकर्ता थे, को देश भर के 74 केंद्रों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया था और इसकी अंतिम प्रस्तुति/रिपोर्ट को आई.सी.ए.आर. में एन.ए.टी.पी. प्रबंधन द्वारा सर्वश्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन, बीकानेर में राठी, थारपारकर और कांकरेज नस्लों पर अनुसंधान शुरू करने के साथ भी निकटता से जुड़े थे ताकि इन मूल्यवान स्वदेशी नस्लों का संरक्षण किया जा सके जो शुष्क क्षेत्र में कृषक समुदाय को लाभान्वित कर रही हैं।

डॉ. शिव प्रसाद किमोथी
सदस्य (पशु विज्ञान एवं मत्स्य विज्ञान )



सदस्य के प्रोफ़ाइल
डॉ. मेजर सिंह का जन्म 20 जून, 1960 को हुआ है। सेवाकाल - कृषि अनुसंधान एवं प्रबंधन में 36 वर्ष (वैज्ञानिक के रूप में 13 वर्ष, वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में 8 वर्ष, प्रधान वैज्ञानिक/प्रोफेसर के रूप में 15 वर्ष); प्रशासनिक अनुभव - निदेशक के रूप में 5.3 वर्ष, परियोजना समन्वयक के रूप में 1.5 वर्ष, प्रभागाध्यक्ष के रूप में 5 वर्ष; सम्मान एवं पुरस्कार: फेलो - नेशनल एकाडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साईंसेस, नई दिल्ली, राष्ट्रीय पुरस्कार: (1) सब्जी प्रजनन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 2005 र्में आइ.सी.ए.आर. टीम एवार्ड (2) वर्ष 2010 में गृह मंत्रालय से राजीव गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार, शैक्षणिक सोसाइटियों से पुरस्कार - उत्कृष्ट अनुसंधान के लिए वर्ष 2003, 2004 और 2015 में हरभजन सिंह पुरस्कार, बीज अनुसंधान से वर्ष 2005 में सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट, वर्ष 2021 में सी.एच.ए.आई. एप्रीसिएशन एवार्ड; शैक्षणिक निकायों से सम्मान: उपाध्यक्ष - इंडियन सोसाइटी ऑफ अल्लीयम्स, पूणे, सचिव - ए.पी.आई.वी, वारणासी; मुख्य संपादक - सब्जी विज्ञान और जर्नल ऑफ अल्लीयम्स; बाहरी वित्तपोषण का मोबलाइजेशन: बाहरी संगठनों द्वारा वित्तपोषित 13 परियोजनाओं का नेतृत्व/प्रधान अन्वेषक जिनमें अंतर विषयक, अंतर संस्थागत एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागिता थी। प्रकाशन: विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में 200 से अधिक अनुसंधान लेख जिनमें से 100 से अधिक लेख उच्च प्रभाव वाले जर्नलों में प्रकाशित; एम. एससी के 5 तथा पीएच.डी. के 13 छात्रों को मार्गदर्शन। तीन पुस्तकें ‘‘हेटरोसिस इन क्रॉप प्लांट्स‘‘, लेग्यूम वेजिटेबल्स‘‘ और बायोटेक्नोलॉजी इन क्रॉप इम्प्रूवमेंटः कॉन्सेप्ट्स एंड मैनुअल। 16 से अधिक अनुसंधान/विस्तार बुलेटिन, 26 पुस्तक अध्याय और 50 लोकप्रिय लेख प्रकाशित।
वैज्ञानिक उपलब्धियां: बैंगन में दो संकर ‘काशी संदेश‘ और ‘काशी कोमल‘, दो किस्में ‘काशी तरु‘ और ‘काशी प्रकाश‘ का विकास, मिर्च में तीन संकर ‘काशी सुर्ख‘, ‘काशी सिंदूरी‘, ‘काशी गौरव‘ और एक किस्म ‘काशी अनमोल‘, मटर में दो किस्में ‘काशी शक्ति‘ और ‘काशी मुक्ति‘, टमाटर में एक संकर ‘काशी अभिमान‘ और एक किस्म ‘काशी अमन‘, फ्रेंच बीन में एक किस्म ‘काशी परम‘ का विकास। इन किस्मों एवं संकरों को खेत निरूपणों के माध्यम से किसानों में लोकप्रियीकरण। शूट एवं फ्रूट बोरर के प्रतिरोध के लिए ब्तल 1।ब जीन कंसट्रक्ट के उपयोग से बीटी बैंगन एवं बीटी टमाटर का विकास। देश में बीटी बैंगन वंशक्रमों के जैवसुरक्षा मूल्यांकन का समन्वयन। जल की कमी और बहु अजैविक तनावों के प्रति सहिष्णुता के लिए ।जक्त्म्ठ1। एवं ठर्ब।ज्12 जीन कंसट्रक्ट्स के उपयोग से टमाटर में ट्रांसजेनिक वंशक्रमों का विकास। टमाटर में मार्कर की सहायता से प्रजनन का प्रारम्भ तथा ज्लस्ब्ट के विरूद्ध प्रतिरोधी किस्मों के विकास के लिए ज्ल1ए ज्ल2 एवं ज्ल3ं जीनों पायरामिडिड। जलवायु अनुकूलन पर अनुसंधान का प्रारम्भ तथा उच्च तापमान सहिष्णुता वाले टमाटर के दो वंशक्रम और प्याज के दो वंशक्रमों का विकास। सूखे एवं अत्यधिक जल सहिष्णुता के लिए प्याज के दो वंशक्रमों की पहचान। अनुसंधान उपलब्धियों के अतिरिक्त, किसानों के लाभार्थ विस्तार गतिविधियां। जनजातीय सहायता परियोजना के तहत, महाराष्ट्र के नंदरबार जिले में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं प्याज की खेती को बढ़ावा। पांच वर्षों के निरन्तर प्रयासों के कारण जिले में प्याज की खेती के क्षेत्रफल में चार गुना वृद्धि एवं अधिक मूल्यों की प्राप्ति से किसानों को लाभ। ख़रीफ में प्याज की खेती जो महाराष्ट्र और कर्नाटक तक सीमित थी उसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र तक पहुंचाया गया। पिछले तीन वर्षों से 400 से अधिक किसानों ने राज्य सरकार की सहायता से ख़रीफ प्याज की खेती प्रारम्भ किया और ख़रीफ प्याज का उत्पादन 2000 हेक्टेयर तक पहुंच गया।

डॉ. मेजर सिंह
सदस्‍य (पादप विज्ञान)


डॉ. बी.एस. द्विवेदी ने चंद्र शेखर आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, कानपुर से मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान में एम.एससी. और पीएच.डी. की उपाधियां प्राप्त की है। उन्होंने वर्ष 1986 में भा.कृ.अनु.प. की कृषि अनुसंधान सेवा में शामिल होने के बाद, परिषद के विभिन्न संस्थान में जैसे उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के लिए भा.कृ.अनु.प. अनुसंधान परिसर, शिलांग (अब उमियम में), भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (पूर्व पी.एस.सी.एस.आर.), मोदीपुरम और भा.कृ.अनु.प.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में सेवा की है, जिनमें 2011 से 2020 के दौरान मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग, आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. में अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल है। डॉ. द्विवेदी ने 36 वर्षों से अधिक अपने पेशेवर सेवाकाल के दौरान, मुख्य रूप से विभिन्न कृषि-पारिस्थितिकियों के तहत मृदा स्वास्थ्य के मूल्यांकन, जीर्णोद्धार और प्रबंधन के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण अनुसंधान योगदान दिया। उनकी रुचि के क्षेत्र हैं; स्थान विशिष्ट पोषक तत्व प्रबंधन, मृदा संसाधन लक्षण वर्णन और भूमि उपयोग नियोजन और संरक्षित कृषि। उन्होंने कई समीक्षा लेख, बुलेटिन, पुस्तक और पुस्तक अध्याय और लोकप्रिय लेखों के अलावा प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 150 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। वर्ष 2013 से 2020 के दौरान वे इंडियन सोसाइटी ऑफ सॉइल साइंस जर्नल के मुख्य संपादक भी थे। वर्ष 2004 से 2020 की अवधि के दौरान स्नातकोत्तर विद्यालय, भा.कृ.अनु.प. - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में संकाय सदस्य के रूप में, डॉ. द्विवेदी ने कई पीएच.डी. और एम.एससी के छात्रों को मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान के विषयवस्तु क्षेत्र में मार्गदर्शन दिया। उन्होंने सरकारी विभागों, उर्वरक उद्योग, भा.कृ.अनु.प. के संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर कार्य किया।
डॉ. द्विवेदी के पास एक शानदार शैक्षणिक रिकॉर्ड है, जिसमें उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान हैं। उनमें से महत्वपूर्ण है आइ.सी.ए.आर का रफी अहमद किदवई पुरस्कार, आई.ए.आर.आई. का हरि कृष्ण शास्त्री मेमोरियल पुरस्कार, एस.एस. रानाडे लाइफटाइम अचीवमेंट एवार्ड, आई.एस.एस.एस.-प्लैटिनम जयंती स्मृति पुरस्कार, आई.एस.एस.एस.-डॉ. जे.एस.पी. यादव मेमोरियल अवार्ड, एफ.ए.आई.-गोल्डन जुबली अवार्ड, आई.पी.एन.आई.-एफ.ए.आई. अवार्ड और टी.एस.आई.- एफ.ए.आई. अवार्ड।
डॉ. द्विवेदी नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, नेशनल एकेडमी ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज और इंडियन सोसाइटी ऑफ सॉइल साइंस के फेलो हैं।

डॉ. बी. एस. द्विवेदी
सदस्‍य (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन )


      अंतिम अद्यतन ..... /अगस्त/2014  
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